ओम कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने प्रणत:। क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।।

अपना दल (एस) को तगड़ा झटका: प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार पाल ने दिया इस्तीफा



उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर सामने आया है। NDA की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) के कद्दावर नेता और प्रदेश अध्यक्ष राजकुमार पाल ने अपने पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है और यह सवाल उठ रहा है — क्या राजकुमार पाल समाजवादी पार्टी का दामन थामने जा रहे हैं?

क्या लिखा है इस्तीफे में?

राजकुमार पाल ने पार्टी नेतृत्व को लिखे अपने पत्र में लिखा है:

“लगातार हो रही उपेक्षा और बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर तथा डॉ. सोनेलाल पटेल जी की पवित्र विचारधारा से अपना दल (एस) के भटक जाने के कारण मैं पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद एवं प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे रहा हूं।”

उनका यह बयान यह स्पष्ट संकेत देता है कि वे लंबे समय से पार्टी नेतृत्व, खासकर केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल से नाराज चल रहे थे।

कौन हैं राजकुमार पाल?

राजकुमार पाल ने 2019 में प्रतापगढ़ सदर से उपचुनाव जीतकर विधायक बने थे। उनका ताल्लुक वंचित और पिछड़े वर्ग से है, और वे ज़मीनी राजनीति में मजबूत पकड़ रखते हैं। मई 2022 में उन्हें अपना दल (एस) का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। तब उन्हें अनुप्रिया पटेल का बेहद करीबी माना जाता था।

सपा में शामिल होने की तैयारी?

हालांकि उन्होंने अब तक समाजवादी पार्टी में जाने की औपचारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन सूत्रों के मुताबिक राजकुमार पाल बीते कुछ समय से अखिलेश यादव के संपर्क में थे। माना जा रहा है कि जल्द ही वे समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। यह कदम सपा के लिए भी बड़ा राजनीतिक लाभ साबित हो सकता है, खासकर पूर्वांचल की राजनीति में।

अन्य नेताओं ने भी दिया इस्तीफा

राजकुमार पाल के साथ-साथ पार्टी के प्रदेश सचिव कमलेश विश्वकर्मा और कई अन्य जिला स्तरीय पदाधिकारियों ने भी अपना इस्तीफा सौंप दिया है। यह संकेत है कि पार्टी के अंदरूनी हालात लंबे समय से ठीक नहीं थे।

अपना दल (एस) की चुप्पी

फिलहाल अनुप्रिया पटेल या पार्टी की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। लेकिन इतना तय है कि यह घटनाक्रम 2024 के बाद NDA में जारी अंदरूनी उथल-पुथल को और गहरा कर सकता है।

क्या ये बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है? राजकुमार पाल जैसे ज़मीनी नेता का इस्तीफा सिर्फ अपना दल (एस) ही नहीं, बल्कि भाजपा और एनडीए के लिए भी एक बड़ा राजनीतिक संकेत है। पूर्वांचल में जिस तरह से ओबीसी वोटबैंक का असर है, ऐसे नेताओं की बगावत 2027 विधानसभा चुनावों में समीकरण बिगाड़ सकती है।

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